Monday, February 17, 2020

केंद्र सरकार की इस नई पॉलिसी के विरोध में चल रहे आंदोलन का लक्ष्य नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 14A के निरस्तीकरण पर केन्द्रित हो जाना चाहिए, जो भारत में नागरिकता के निर्धारण को तय करती है। केवल इस प्रकार के उपाय से ही प्रदर्शनकारियों को सरकार के कसमों-वादों पर यकीन हो सकता है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम मुसलमानों की नागरिकता को नहीं छीनने जा रहा है। प्रदर्शनकारी नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC/NRIC) की घोषणा को वापस लेने के लिए आंदोलन चला रहे हैं, जिस तिकड़ी के बारे में सरकार का मानना है कि ये वे औजार हैं जिनके माध्यम से भारतीय नागरिकों और अवैध घुसपैठियों को अलग करने का काम किया जाना है। सिर्फ एनआरआईसी की वजह से ही सीएए एक बेहद नुकीला, भेदभावपूर्ण धार हासिल किये हुए है, जिसे नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 14ए के तहत शासनादेश हासिल है। सीएए उन सभी गैर-मुस्लिमों को जल्द से जल्द नागरिकता प्रदान करने की कोशिश करता है जो स्पष्ट तौर पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हो रहे धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए बिना किसी वैध यात्रा के दस्तावेजों के, भारत में घुस आये थे। इस विशेषाधिकार का विशेष महत्व सिर्फ उसी स्थिति में होने जा रहा है जब जिनकी नागरिकता संदेह के घेरे में हैं उन्हें उन लोगों से अलग किया जाएगा जिनकी नागरिकता की स्थिति को लेकर कोई संदेह नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी तक सिवाय विदेशी नागरिकों के, देश के समस्त निवासियों को भारतीय नागरिक माना जाता रहा है, जब तक कि उनकी स्थिति के बारे में संदेह न हो और उनके बारे में यह धारणा बन चुकी हो कि ये अवैध घुसपैठिये हैं। सीएए को लागू करने के लिए नियम निर्धारित करने के बावजूद, कुल मिलाकर स्थिति कमोबेश जस की तस ही बनी हुई है- उदहारण के लिए अभी तक यह नहीं मालूम कि जो गैर-मुस्लिम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन के दौरान किन-किन दस्तावेजों को प्रस्तुत करना होगा। वे लोग जिनको सीएए के तहत राहत दी गई है, वे आगे आकर अपने लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का दावा पेश कर सकते हैं- जैसा कि उदाहरण के तौर पर वे निवासी जो असम के नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर से बाहर कर दिए गए थे। हालाँकि भारतीय पासपोर्ट के अनुसार, असम से बाहर हर व्यक्ति को भारतीय नागरिक माना जाएगा, फिर भी ऐसा हो सकता है कि उनमें से कुछ के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ न हों, और ऐसी स्थिति में उनकी नागरिकता नकारी जा सकती है। हालांकि जैसे ही यह देशभर में नागरिकों की दो अलग-अलग श्रेणी बनाता है, जिनमें से एक श्रेणी वैध घोषित कर जाती है और दूसरी श्रेणी में संदिग्ध नागरिकों की हो जाती है, उसी समय यह सीएए कानून अपने आप में भेदभावपूर्ण बन जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो मुसलमान संदिग्ध नागरिकों की श्रेणी में पाए जायेंगे उनके लिए सीएए की ओर से कोई रक्षा कवच नहीं मुहैया किया गया है, और उनके साथ ही ये उन गैर मुस्लिमों पर भी लागू होता है जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से नहीं आए थे। जब तक वे अपनी भारतीय नागरिकता को साबित नहीं कर पाते उनके सामने अपनी नागरिकता के अधिकार को खो देने, बंदी बनाये जाने और निर्वासित किये जाने का खतरा बना रहने वाला है। और ऐसा एनपीआर-एनआरआईसी की आपस में जुड़ी कड़ी की प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना संभव हो पाया है, जो नागरिकों और गैर-नागरिकों की दो श्रेणियां को तैयार करने का आधार पैदा करता है।

शाहीन बाग़ का लक्ष्य होना चाहिए नागरिकता अधिनियम की धारा 14ए को निरस्त करवाना | न्यूज़क्लिक