Saturday, February 29, 2020

लाल किताब दिवस (Red Books Day), 21 फरवरी 2020, से पहले की रात को, भारत के तमिलनाडु में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बत्तीस संस्थापकों में से एक, एन. शंकरैया, ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र का एम. शिवलिंगम द्वारा किया गया, नया तमिल अनुवाद पढ़ा। 98 साल के कॉमरेड शंकरैया ने कहा कि उन्होंने पहली बार 18 साल की उम्र में इस घोषणापत्र को पढ़ा था। वर्षों से वो इस किताब को बार-बार पढ़ते रहे हैं, क्योंकि हर बार इसका पाठ कुछ नया सिखाता है। और कुछ ऐसा -जो दुख की बात है- कि चिरआयु लगता है। घोषणापत्र के अंत में, मार्क्स और एंगेल्स ने दस अनंतिम योजनाओं की एक सूची दी है, जो किसी भी उदार व्यक्ति को समझ में आनी चाहिए। यह सूची 1848 में तैयार की गई थी, लेकिन आज भी ये न केवल समकालीन है, बल्कि आवश्यक भी है। इस सूची में पहली माँग, भू-संपत्ति के उन्मूलन की है - एक ऐसी माँग जो आज ब्राजील में कृषि सुधार पर बहस के माहौल में लगातार उठायी जा रही है, और जो दक्षिण अफ्रीका में बड़े स्तर के भू-निष्कासन की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारने के लिए मुआवजे के बिना भूमि-नियमन पर 2018 से चल रही बहसों में परस्पर दबाव डाल रही है (इस संदर्भ में मार्च 2020 में विधायिका के प्रस्तावों की उम्मीद की जा रही है)। इस सूची में विरासत के अधिकार के उन्मूलन और आरोही कराधान की माँगें हैं, जो कि धन के भद्दे विनियोग को रोकने और अधिशेष धन की पुनरावृत्ति करने के समाजवादी उपाय हैं। धन और कॉर्पोरेट कर बढ़ाने की मांग संयुक्त राज्य अमेरिका में उठ रही है, जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बर्नी सैंडर्स ने कहा है कि धन की असमानता लोकतंत्र को दूषित करती है। नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जयति घोष ने लिखा है कि वैश्विक वित्तीय गोपनीयता को समाप्त करने की ज़रूरत है ताकि अति-समृद्ध लोगों और बहुराष्ट्रीय निगमों के छुपे हुए धन का बेहतर हिसाब लगाया जा सके। विनिर्माण और कृषि क्षेत्र की अति-महत्वपूर्ण माँगों की सम्मुचित सूची के बाद, मार्क्स और एंगेल्स की अब आम धारणा बन चुकी आख़िरी माँग थी, सभी बच्चों के लिए सार्वजनिक विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के आधे देशों में 50% से अधिक युवा उच्च माध्यमिक विद्यालय पूरा नहीं कर पाए हैं, जबकि 50% गरीब बच्चों ने प्राथमिक विद्यालय पूरा नहीं किया है। यूनेस्को ने सुझाव दिया है कि शिक्षा पर ख़र्च के संदर्भ में 6% सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक अच्छा मानक है। लेकिन दुनिया के केवल एक चौथाई देश ही GDP का 6% या उससे ज़्यादा शिक्षा क्षेत्र में ख़र्च करते हैं और अधिकतर जीडीपी के 3% से अधिक खर्च नहीं करते हैं। घोषणापत्र के लिखे जाने के एक सौ बहत्तर साल बाद भी इसकी मूलभूत कल्पना आज भी सार्थक है।

समाज बदलने की बात करो, या चुप रहो | न्यूज़क्लिक