Friday, March 6, 2020

अमेरिकी-तालिबान समझौते के ख़िलाफ़ काबुल में एक छोटी-मोटी बगावत की खुश्बू हवा में तैर रही है। ऐसा लगता है कि इस सम्बन्ध में वाशिंगटन में खतरे की घंटी बज चुकी है कि इस शांति बहाली को खतरे में डालने वाले प्रमुख स्रोत के रूप में वे हितधारक गुट हैं, जिनका राज्य की तमाम एजेंसियो पर क़ब्ज़ा है और सत्ता हस्तांतरण को लेकर वे गुस्से में हैं। देश में नाउम्मीदी की हद तक बिखरे समूहों के बीच यदि कोई इस काबुल पर क़ब्ज़ा जमाये गिरोह को अलग-थलग कर पाने में सक्षम है तो यह सिर्फ अमेरिका के वश में है। राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के शासनकाल में अफ़ग़ानिस्तान के विशेष राजदूत पीटर टॉमसन की ओर से अस्सी के दशक में सोवियत के ख़िलाफ़ जिहाद के दौरान जो शक्तिशाली रूपक का इस्तेमाल किया गया था, उसका ख्याल आज आ रहा है। राजदूत टॉमसन जब आपस में संघर्षरत मुजाहिदीन गुटों (पेशावर सेवेन) के बीच में सहमति के तमाम बेकार की कोशिशों को आजमा कर थक चुके थे, एक ऐसे समय में जब निकट भविष्य में सोवियतों के पीछे हटने की पूरी पूरी संभावना नजर आ रही थी। ऐसे में उनका कहना था कि ये सारी भाग दौड़ मानों मेढकों को एक ही तराजू पर रखने जैसी बेमतलब की कवायद साबित होने जा रही है- ये कुछ ऐसा ही था जैसे आप एक को डालते हो, तभी पता चलता है कि यहाँ पहले से ही कोई दूसरा कूदकर निकल चुका है, और यह क्रम बना रहता है।

ट्रंप ने तालिबान डील को एक बार फिर पटरी पर ला दिया है | न्यूज़क्लिक