कोरोना काल में सफ़ाई-सैनिक भी अपनी जान जोखिम में डाल कर सफ़ाई व्यवस्था का मोर्चा संभाल रहे हैं। कोरोना वॉरियर्स के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देश भर में कई सफ़ाई-सैनिक कोरोना से लड़ते हुए शहीद भी हो चुके हैं। फिर भी वे साफ़-सफ़ाई रखकर हमें कोरोना के संक्रमण से यथासंभव बचाने का प्रयास कर रहे हैं। बावजूद इसके इनकी उपेक्षा की जा रही है। ये तिरस्कृत हो रहे हैं। हाल ही में दक्षिण दिल्ली नगर निगम के सफ़ाई सैनिक विनोद की कोरोना से मौत हो गयी। इससे पहले पूर्वी दिल्ली की सफ़ाई सैनिक दया भी कोरोना संक्रमण के कारण अपनी जान गंवा चुकी हैं। गौरतलब है कि इसी नगर निगम की कोरोना संक्रमित संगीता और सुनीता लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल में मौत से जूझ रही हैं। सफ़ाई कर्मचारी एक्शन कमेटी के वीरेंदर सिंह का आरोप है कि विनोद की मौत के लिए निगमायुक्त ज्ञानेश भारती जिम्मेदार हैं। क्योंकि बार-बार गुहार लगाने पर भी सफ़ाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराये जा रहे। कमेटी ने पहले चेताया था कि अगर किसी की मौत होती है तो इसके लिए निगमायुक्त जिम्मेदार होंगे। फिर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। यह तो राजधानी दिल्ली का हाल है।

क्यों उपेक्षित और तिरस्कृत हैं हमारे सफ़ाई-सैनिक? | न्यूज़क्लिक




रक्षा मंत्रालय से वित्तीय सलाहकार के पद से सेवानिवृत्त हुए सुधांशु मोहंती ने न्यूज़क्लिक के साथ विशेष चर्चा में कहा कि प्रधानमंत्री सिटिज़न असिस्टेंस एंड रिलीफ़ इन इमरजेंसी सिचुएशन्स (CARES) फंड की कोई ज़रूरत नहीं थीI उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी कर्मचारियों का इसमें योगदान अपनी मर्ज़ी से नहीं है वो ज़बरदस्ती करवाया जा रहा है, जिससे ये बहुत हद तक मुग़लिया शासन में ग़ैर-मुसलमानों पर लगाया जाने वाला जज़िया कर जैसा हैI उनका ये भी मानना है कि इस फंड का उद्देश्य केवल एक व्यक्ति को मसीहा के रूप में प्रसिद्ध करना है और वह व्यक्ति है नरेंद्र मोदीI

"PM CARES फंड सरकारी कर्मचारियों पर मुग़लिया जज़िया कर जैसा है" | न्यूज़क्लिक




২৯ হাজার ছাড়ালো দেশে বর্তমানে করোনা আক্রান্তের সংখ্যা। মঙ্গলবার সকাল ৮টায় কেন্দ্রীয় স্বাস্থ্য মন্ত্রক প্রকাশিত তথ্য অনুযায়ী, দেশে বর্তমানে করোনা আক্রান্তের সংখ্যা ২৯,৪৩৫। কেন্দ্রীয় মন্ত্রকের তথ্য অনুযায়ী, এখনও পর্যন্ত সংক্রমণ মুক্ত হয়েছেন ৬,৮৬৯ জন। করোনা সংক্রমিত হয়ে ভারতে মারা গেছেন মোট ৯৩৪ জন। শেষ ২৪ ঘণ্টায় ১,৫৪৩ টি নতুন সংক্রমণের খবর পাওয়া গেছে। শেষ ২৪ ঘণ্টায় মারা গেছেন ৬২ জন এবং ৬৮৪ জনকে সুস্থ ঘোষণা করা হয়েছে। কেন্দ্রীয় সরকারের পরিসংখ্যান অনুসারে সর্বাধিক সংক্রমণের ঘটনা ঘটেছে মহারাষ্ট্রে, ৮,৫৯০টি, শেষ ২৪ ঘন্টায় ৫২২ জনের শরীরে নতুন করে সংক্রমণের খবর পাওয়া গেছে। এরপরই রয়েছে গুজরাট, সেখানে ৩,৫৪৮ জনের শরীরে এই ভাইরাসের উপস্থিতি ধরা পড়েছে। দিল্লিতে ৩,১০৮ জন, রাজস্থানে ২,২৬২ জন, মধ‍্যপ্রদেশে ২,১৬৮ জনের সংক্রমণ ঘটেছে। উত্তরপ্রদেশে ১,৯৫৫ জন, তামিলনাড়ুতে ১,৯৩৭ জন, অন্ধ্রপ্রদেশে ১,১৮৩ জন, তেলেঙ্গানায় ১,০০৪ জন, পশ্চিমবঙ্গে ৬৯৭ জন, জম্মু ও কাশ্মীরে ৫৪৬ জন, কর্ণাটকে ৫১২ জন, কেরালায় ৪৮১ জন, বিহারে ৩৪৫ জন, পাঞ্জাবে ৩১৩ জন, হরিয়ানাতে ২৯৬জন, ওড়িশায় ১১৮ জন, ঝাড়খন্ডে ৮২ জন, উত্তরাখণ্ডে ৫১ জন, হিমাচল প্রদেশে ৪০ জন, চন্ডীগড়ে ৩০ জন, ছত্তিশগড়ে ৩৭ জন, আসামে ৩৬ জন, আন্দামান ও নিকোবর দ্বীপপুঞ্জে ৩৩ জন, লাদাখে ২০ জন, মেঘালয়ে ১২ জন, গোয়াতে ৭ জন (৭জনই সুস্থ), পুদুচেরিতে ৮ জন, মনিপুরে ২ জন, ত্রিপুরায় ২জন, মিজোরামে ১ জন, অরুণাচল প্রদেশে ১ জনের শরীরে সংক্রমণ পাওয়া গেছে।

COVID-19: শেষ ২৪ ঘন্টায় দেশে মৃত ৬২, মোট মৃত ৯৩৪, মোট সংক্রমিত ২৯,৪৩৫ - People's Reporter




बीते महीने दिल्ली में हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम के बाद कोरोना के मामले तेजी से सामने आए थे। जमात से जुड़े सैकड़ों लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे। उनका देश भर के विभिन्न अस्पतालों में इलाज किया गया। उनमें से कुछ अब ठीक हो चुके हैं। अब वह दूसरे मरीजों की जान बचाने के लिए प्लाज्मा डोनेट कर रहे हैं। गौरतलब है कि पूरे दुनिया के चिकित्सक और वैज्ञानिक इस वायरस को रोकने की कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन दवा और टीके के अभाव में उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी ने थोड़ी उम्मीद जताई है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में इसकी मदद से इलाज किया जा रहा है। आपको बता दें कि जो मरीज संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसी एंटीबॉडीज की मदद से कोरोना के दूसरे संक्रमित मरीजों के रक्त में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है। ऐसे में कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों को अपना प्लाज्मा दान करना होता है।

कोरोना संकट से उबारने में 'वॉरियर्स' बन रहे जमाती! | न्यूज़क्लिक




देश में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिये मोदी सरकार ने घोषणा की कि 20 अप्रैल 2020 से लॉकडाउन को कुछ इलाकों में आंशिक रूप से उठाया जाएगा। पर पिछले पांच-छह दिनों का हिसाब-किताब देखें तो समझ आ जाएगा कि ये मात्र कहने की बात है। धरातल पर स्थितियां कुछ ठीक नहीं नज़र आतीं। बेहतर नियोजन और समन्वय के अभाव में कदम-कदम पर अड़चनें आती रहीं, और पुनर्नियोजन की जरूरत पड़ती रही। कुल मिलाकर इससे अराजकता और अव्यवस्था ही फैली। अब सरकार को चाहिये कि तत्परता के साथ तमाम दिक्कतों को हल करने के उपाय खोजे। अब लॉकडाउन को लम्बा खींचा नहीं जा सकता, इसलिए 3 मई के बाद लॉकडाउन में और भी ढील देनी पड़ेगी। हमने पहले ही देखा था कि लॉकडाउन खोलने के तरीके पर राज्यों के साथ ढंग से न तो बातचीत हुई न ही उनके साथ ठीक से समन्वय किया गया। इसलिए तमिलनाडु ने तय कर लिया कि 3 मई तक लॉकडाउन आंशिक रूप से भी नहीं खुलेगा। कर्नाटक में भी 20 अप्रैल को आंशिक लॉकडाउन की घोषणा की गई, फिर 21 अप्रैल को इस आदेश को वापस ले लिया गया और कुछ अलग किस्म के लॉकडाउन की घोषणा की गई। यह केंद्र के आदेश से अधिक सख्त था-तुगलकी फरमान जैसा। ऐसा लगा कि भाजपा के भीतर भी समन्वय का अभाव रहा क्योंकि पार्टी का शासन अधिकांशतः ‘वन मैन शो’ बनकर रह गया है।

अनियोजित ढंग से लॉकडाउन उठाना किसी काम का नहीं | न्यूज़क्लिक




मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार 40 वर्षीय पीड़ित महिला ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में कहा है कि वह पिछले एक महीने से लॉकडाउन के कारण सवाई माधोपुर में फंसी थी, इसलिए अब उसने पैदल ही जयपुर स्थित अपने घर पहुंचने का फैसला किया। लेकिन जब वह बटोदा के एक स्कूल में रात को आराम के लिए रुकी तो वहां कुछ लोगों ने उसके साथ गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना गुरुवार रात 23 अप्रैल की है। पीड़ित महिला ने थाने में इसकी शिकायत अगले दिन शुक्रवार सुबह 24 अप्रैल को दर्ज करवाई है। महिला ने सवाई माधोपुर पुलिस को दिए अपने बयान में कहा कि वह दौसा जेल में अपने बेटे से मिलने गई थी, जो 2015 में जयपुर में गैंगरेप और पॉक्सो मामले में आरोपी है। इस संबंध में इलाके के डीएसपी पार्थ शर्मा ने कहा कि तीनों आरोपियों की पहचान कर ली गई और उन्हें फौरन गिरफ्तार भी कर लिया गया। बाद में उन्हें कोर्ट में पेश कर कर दिया गया है। महिला की शिकायत पर उसकी मेडिकल जांच की गई और बयान दर्ज किया गया है।

राजस्थान: नहीं थम रही यौन हिंसा, लॉकडाउन में फंसी महिला के साथ गैंगरेप | न्यूज़क्लिक




अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी फ़ेसबुक ने रिलायंस समूह की टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी- जियो में 9.99 फ़ीसदी शेयर्स खरीदने के लिए 5.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (क़रीब 43,574 करोड़ रुपये) का निवेश किया है। यह घटनाक्रम देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कॉरपोरेट संस्था 'रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL)' के शेयरहोल्डर्स में अंबानी परिवार के भीतर हुए बदलावों के तुरंत बाद हुआ। बता दें रिलायंस जियो, रिलायंस समूह की प्रतिनिधि कंपनी RIL की सहायक कंपनी है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) की वेबसाइट में ब्लॉक ट्रांज़ेक्शन पर उपलब्ध आंकड़ों और सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध 'रेगुलेटरी फिलिंग (नियामक खानापूर्ति)' के ज़रिए हमने पता लगाया कि पिछले वित्त वर्ष के आखिरी दिन (31 मार्च) RIL के प्रायोजकों की हिस्सेदारी में बदलाव हुआ है। यह सब 24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लॉकडॉउन की घोषणा के बाद किया गया। 25 मार्च और 27 मार्च को हुए दो लेन-देन में RIL प्रायोजक समूह की सबसे बड़ी हिस्सेदार कंपनी 'देवर्षि कमर्शियल्स LLP (लिमिटेड लॉयबिल्टी पार्टनरशिप)' की हिस्सेदारी 11.21 फ़ीसदी से घटाकर 8.01 फीसदी कर दी गई। इसके लिए कंपनी के 20.26 करोड़ शेयर्स ओपन मार्केट में बेचे गए। प्रायोजक समूह की दो दूसरी कंपनियां, 'तत्तवम एंटरप्राइज़ LLP' और 'समरजीत एंटरप्राइज़ LLP' ने बहुत बड़ी मात्रा में देवर्षि कमर्शियल्स के (करीब़ 19.28 करोड़) शेयर्स खरीदे हैं।

फ़ेसबुक-रिलायंस समझौते के पहले अंबानी परिवार में हुआ था शेयरों का फेरबदल | न्यूज़क्लिक




भारत में कोरोना महामारी की आड़ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जारी सुनियोजित नफरत-अभियान और सरकार की शह पर चल रहे मुसलमानों के मीडिया ट्रायल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। इस सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की ओर से की जा रही डेमेज कंट्रोल की कोशिशों के बीच ही रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत को भी कहना पडा कि कुछ लोगों की गलती के लिए पूरे समुदाय को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। भागवत ने यह बात संघ के स्वयंसेवकों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा, ''कोरोना महामारी से निबटने के कोशिशों के दौरान किसी एक समूह की गलती के लिए हम उस पूरे समुदाय के प्रति दुर्भावना नहीं रख सकते।’’ हालांकि इस सिलसिले में संघ सुप्रीमो ने किसी का नाम नहीं लिया, पर समझा जा सकता है कि उनका इशारा तबलीगी जमात की ओर ही रहा और इस इशारे का आशय भी साफ है कि वे देश में कोरोना का संक्रमण फैलाने के लिए तबलीगी जमात को ही खास तौर पर जिम्मेदार मानते हैं।

भागवत का भाषण: डेमेज कंट्रोल के साथ हताश समर्थकों को बहलाने का उपक्रम | न्यूज़क्लिक




अमेरिका में सार्वजनिक स्वास्थ्य एक्सपर्ट की सलाह के बावजूद 5 और राज्य बिज़नेस और पब्लिक गतिविधियों पर लगी पाबंदियों में ढील देने की तैयारी में हैं। 27 अप्रैल को कोलोराडो, मिसिसिप्पी, मोंटाना, मिनेसोटा और टेनेसी ने विभिन्न क्षेत्रों को खोलने का निर्णय लिया है, जिन्हें लॉकडाउन के दौरान बंद किया गया था। कोलोराडो के राज्य प्रशासन ने रविवार को ही धार्मिक गतिविधियों को चालू कर दिया था, जबकि आज से वहाँ रिटेल दुकानें और बिज़नेस खुल जाएंगे। प्रशासन ने 7 मई को पूरी तरह से लॉकडाउन ख़त्म करने का निर्णय लिया है। मिसिसिपी ने स्टे एट होम के आदेशों को बढ़ाने के ख़िलाफ़ निर्णय लिया है। यह आदेश सोमवार को ख़त्म होने वाले हैं। मोंटाना और टेनेसी छोटे व्यवसायों को अनुमति देंगे, बशर्ते वह सामाजिक दूरी का पालन करें। जबकि मिनेसोटा औद्योगिक गतिविधियों को शूरू कर रहा है, और 100,000 कर्मचारियों को काम पर वापस भेज रहा है।

अमेरिका : कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बावजूद राज्य दे रहे हैं लॉकडाउन में ढील | न्यूज़क्लिक




अबू धाबी से कमलेश भट्ट का शव 25-26 अप्रैल की दरमियानी रात दोबारा दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा। कोरोना के संकटग्रस्त समय में यूएई में लॉकडाउन के दौरान बड़ी मुश्किल से यही ताबूत 23 अप्रैल को भी दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा था। समूचे दस्तावेजों, डेट सर्टिफिकेट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ आबू धाबी से भारतीय दूतावास ने शव दिल्ली भिजवाया था लेकिन तब कई फोन घुमाने के बाद एयरपोर्ट अधिकारियों ने शव लेने से इंकार कर दिया और उसी विमान से ताबूत आबू धाबी लौटा दिया। आपको बता दें कि उसके मृत्यु प्रमाणपत्र में लिखा है कि वह कोरोना से संक्रमित नहीं था। उसके साथ दो और शव वतन से वापस भेज दिए गए। कमलेश की मौत 17 अप्रैल को हुई थी। टिहरी से शव लेने के लिए विशेष पास बनवाकर दिल्ली पहुंचे उसके दो भाइयों के होश फाख्ता हो गए, ये क्या क्रूर मज़ाक था, जो अभी-अभी उनके भाई के शव के साथ हुआ।

कमलेश की तरह फिर न लौटाया जाए किसी बेटे का शव, ये तय करे सरकार | न्यूज़क्लिक




Sunday, April 26, 2020

संघ का हमेशा से एक गूढ़ उद्देश्य रहा है कि संघ को कथित ऊंची जातियों की, उसमें भी ऊंची जातियों के सक्षम पूंजीपतियों की सत्ता स्थापित करनी थी, जिसके लिए “हिन्दू धर्म” का चोगा ही अंतिम विकल्प था। चूंकि लोकतंत्र में सीधे एक दो जाति की श्रेष्ठता का दावा करके विजयी नहीं हुआ जा सकता था इसलिए अपनी जातियों को आगे बढ़ाने के लिए उस धर्म को चुना गया जिसमें उन्हें शीर्ष पर रहने की वैधता मिली हुई थी। यही कारण है सीधे जाति से न लड़कर संघ ने धर्म का रास्ता चुना। अब धर्म के राज की स्थापना के लिए जरूरी है कि “सेक्युलरिज्म” जैसे शब्द को अप्रसांगिक किया जाए। यही कारण है कि संघ की विचारधारा मानने वालों ने सबसे अधिक निशाना बनाया तो सेक्युलरिज्म शब्द को.

RSS की भाषा बोल रही हैं बबिता और रंगोली, जो सबसे 'नफरत' करना सिखाता है : श्याम मीरा सिंह




कोरोना संक्रमण को लेकर भले ही देशभर में मुसलमानों को संदिग्ध बना दिया गया हो, लेकिन हकीकत ये है कि मुसलमान देश से कोरोना को मिटाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता नज़र आ रहा है। वो कोरोना संक्रमित मरीजों की जान बचाने के लिए अपना ख़ून देने से भी पीछे नहीं हट रहा। दरअसल, लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल के एक रेजिडेंट डॉक्टर हैं तौसीफ़ खान, जो हाल ही में कोरोना संक्रमण से ठीक हुए हैं। वो एक कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ का इलाज करने की वजह से संक्रमित हो गए थे। स्वस्थ होने के बाद वो एक बार फिर से कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में जुट गए हैं। वो अब प्लाजमा थेरेपी के ज़रिए कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करेंगे। इसके लिए उन्होंने शनिवार को खुद अपना खून दान किया।

कोरोना से मरीजों की जान बचाने के लिए आगे आए डॉक्टर तौसीफ़, रोज़ा रखकर डोनेट किया प्लाज्मा




17वीं या 18वीं शताब्दी में एक फ्रेंच राजकुमारी से कहा गया कि किसान परेशान हैं, उनके पास खाने के लिए रोटी नहीं है। जवाब में राजकुमारी ने कहा, ''तो उन्हें केक खाने को दिया जाए!'', यह बात एक ऐतिहासिक मुहावरा बन गई। इस मुहावरे का इस्तेमाल फ्रांस के कुलीन वर्ग का किसानों की समस्याओं से मुंह मोड़ने और उनकी स्थिति समझने की अक्षमता दिखाता था। भारतीय सरकार ने हाल में बड़ी मात्रा में चावल को इथेनॉ़ल में बदलने का फ़ैसला लिया, ताकि सेनेटाइज़र और पेट्रोल में डाला जाने वाला बॉयो-फ्यूल बनाया जा सके। यह फ़ैसला क्रूर और अंसवेदनशील है। यह फ़ैसला तब लिया गया है, जब अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वाले लाखों प्रवासी और दैनिक मज़दूर, स्वरोज़गार में लगे कर्मचारी और दूसरे ग़रीब लोगों को रोज़ाना खाने के लाले पड़ रहे हों। इन लोगों को रहने की दिक्कत के साथ-साथ जरूरी चीजों की पूर्ति और कोरोना महामारी से सुरक्षा के लिए आर्थिक मदद भी नहीं मिल पा रही है। इन तबकों को अनाज पहुंचाने के केंद्र सरकार के ऊंचे-ऊंचे दावे मीडिया में आती खबरों से खारिज हो जाते हैं। यह लोग अपने गुज़ारे के लिए स्थानीय स्वयंसेवियों की छिटपुट मदद पर निर्भर हैं और किसी तरह जिंदा रहने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकारें भी सांस्थानिक अनाज वितरण और दूसरे ढांचे बनाने में नाकामयाब रही हैं। लेकिन सभी राज्य केंद्र से वित्तीय सहायता न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं। ऊपर से लॉकडॉउन के चलते उनके राजस्व में बहुत कमी आ गई है। लोग भूख से तड़प रहे हैं, लेकिन भंडार नहीं खोले जा रहे हैं सरकार के पास 6 करोड़ टन अनाज है, जिसमें से 3.1 करोड़ टन चावल और 2.75 करोड़ टन गेहूं है। कई विशेषज्ञों, नागरिक-सामाजिक संगठनों और कर्मचारी संघों ने केंद्र से इस भंडार से जरूरी मात्रा में अनाज जारी करने के लिए कहा है। इसे सीधे पहुंचाया जाए या राज्य सरकारों को देकर पीडीएस के ज़रिए मजबूर प्रवासियों और दूसरे गरीबों तक पहुंचाया जाए। इसके लिए किसी भी तरह के दस्तावेज़ या राशन कार्ड न मांगे जाएं। इतने इस्तेमाल के बाद भी सरकार के पास ''अनिवार्य शर्त'' का 2.1 करोड़ टन अनाज रिजर्व होगा। लेकिन केंद्र ने इन अपीलों पर कान बंद कर रखे हैं। यहां तक कि केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री ने दावा किया कि ऐसा करने से आपात स्थिति के लिए बचाकर रखा गया भंडार खत्म हो जाएगा। आखिर इससे बड़ा आपात और क्या हो सकता है? अब सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि ग़रीबों और ज़रूरतमंदों तक इस अनाज को न पहुंचाकर, इसका इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जाए, ताकि बॉयो-फ़्यूल और सेनेटाइज़र बनाए जा सकें। इसके लिए बॉयो-ऊर्जा नीति 2018 के जरूरी प्रावधानों का इस्तेमाल किया गया। क्या वाकई ऐसी जरूरत है? फिलहाल बॉयो-ऊर्जा की कोई जरूरत नहीं बॉयो ऊर्जा नीति तेल के आयात को कम करने के लिए, अलग-अलग नवीकरणीय माध्यमों से इथेनॉल बनाने के मकसद से बुनी गई है. ताकि 20 फ़ीसदी पेट्रोल और पांच फ़ीसदी डीजल की हिस्सेदारी को इस ईंधन से पूरा किया जा सके. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में 1999 के बाद की ऐतिहासिक गिरावट है। इनमें थोड़ा सा उछाल सिर्फ इसलिए आया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के जहाजों पर हमले की बात कही है। दुनिया में इस वक़्त तेल की बहुतायत है और भारत ने इस स्थिति का फायदा उठआने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं, ताकि अपने तेल भंडार की वृद्धि की जा सके। लॉकडॉउन में तेल के उपयोग में बहुत ज़्यादा कमी आ गई है। खासकर यात्री गाड़ियों में लगने वाले पेट्रोल में। इसका बहुत कम उपयोग हो रहा है, यहां तक कि सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट बंद होने से डीजल उपयोग में भी भारी कमी आई है। भले ही केंद्र सरकार ने कितनी ही रियायतों की बात कही हो, पर लॉकडॉउन के चलते ट्रकों के पहिए थम गए हैं। इस पृष्ठभूमि में जब तेल की कीमतें बहुत कम हैं, तब हमें बॉयो-इथेनॉल की क्या जरूरत है? सेनेटाइज़र के लिए भी ज़रूरी इथेनॉल उपलब्ध है बताते चलें कि ऐतिहासिक तौर पर भारत को बॉयो-इथेनॉल के संवर्द्धन में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। यह आमतौर पर गन्ना उद्योग में सह-उत्पाद से मिलता रहा है। भारत सालाना करीब 2,500 से 3,000 मिलियन लीटर इथेनॉल का उत्पादन करता है। इसका इस्तेमाल शराब उद्योग और रसायन उद्योग में किया जाता है। भारत ने इथेनॉल से बने पेट्रोल का हिस्सा कुल खपत का बीस फ़ीसदी करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन सरप्लस इथेनॉल न होने के चलते भारत इस हिस्सेदारी को पांच फ़ीसदी भी नहीं पहुंचा पाया। नतीज़तन भारत अक्सर ब्राजील से इथेनॉ़ल आयात करता है। अगर अब भी जरूरत है, तो ऐसा किया जा सकता है। लॉकडॉउन में सभी शराब बनाने वाली डिस्टिलरीज़ और रिटेल दुकानें पूरी तरह बंद हैं। इसलिए फिलहाल इथेनॉल का इस उद्योग में कोई उपयोग नहीं है। बल्कि सरकार ने बहुत सारी डिस्टीलरीज़ को सेनेटाइज़र बनाने के काम में लगा दिया है। फिर लॉकडॉउन के दौरान सभी केमिकल इंडस्ट्रीज़ भी बंद हैं। इसलिए फिलहाल पीने योग्य और न पीने वाली तमाम एल्कोहल बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में इथेनॉल की उपलब्धता है। मोटे अनुमानों के मुताबिक़, आज सेनेटाइज़र बनाने वालों के लिए करीब 50 करोड़ टन लीटर इथेनॉल मौजूद है। अक्टूबर, 2020 में शुरू हो रहे अगले गन्ने के मौसम से नई इथेनॉल भी सेनेटाइज़र बनाने वालों को मिलने लगेगी। अगर सेनेटाइज़र में 70 फ़ीसदी इथेनॉल इस्तेमाल कर ली जाती है, तो करीब 70 करोड़ टन लीटर सैनिटाइज़र बनाया जा सकता है। क्या चावल का इस्तेमाल इस उद्देश्य के लिए करने का कोई तुक है? ज़मीन ईंधन नहीं, अनाज के लिए है इस मुद्दे पर बचाव की स्थिति में सरकारी सूत्रों का कहना है कि जो भी किया जा रहा है, वो उनके क्षेत्राधिकार में है। चावल का इस्तेमाल कर इथेनॉल बनाने में कोई भी अवैधानिक काम नहीं किया गया। राष्ट्रीय बॉयो-नीति 2018 के तहत ऐसे प्रावधान हैं। ऐसा करने का फ़ैसला निश्चित तौर पर 'बॉयो-ईंधन समन्वय समिति (NBCC)' ने लिया होगा। मुख्य मुद्दा यहां सरकार के काम की वैधानिकता का नहीं, बल्कि फ़ैसले की बड़ी अनैतिकता का है। यहां कुछ मुद्दे स्वामित्व के भी हैं। क्या सरकार अपना उद्देश्य और बॉयो-ईंधन नीति के प्रावधान बताकर चालाकी दिखा रही है। पहली बात तो बॉयो-ईंधन नीति में गैर-खाद्यान्न बॉयोमास के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। विशेष परिस्थितियों में 'अधिशेष' अनाज के इस्तेमाल का प्रावधान बाद में जोड़ा गया था। यही बात यूनाईटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन (FAO) लगातार कहता आया है। 'ज़मीन ईंधन के लिए नहीं, अनाज के लिए है' के नारे तले FAO अनाज के दानों से इथेनॉल बनाने का विरोध करता है। परिभाषा के अंतर्गत पैराग्राफ 3.1 कहता है कि बॉयो-इथेनॉल के उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ''अपशिष्ट पदार्थों, कृषि उत्पादों के अवशिष्ट, तेलीय पेड़ों, ना खाने वाले तेलों और जंगल के जैवनिम्नीकृत हिस्से, उद्योग और नगरपालिका के जैवनिम्नीकृत अपशिष्ट'' हैं। पैराग्राफ 3.2 में आगे गन्ने, सोर्घुम, मक्के, कसावा और सड़े हुए आलू से निकलने वाले स्टॉर्चयुक्त पदार्थों को संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करने की बात है। यहां भी चावल की बात नहीं है। यहां तक कि एडवांस और सेकंड जेनरेशन के बॉयो-ईंधन को भी 'गैर खाद्यान्न फ़सलों' और कच्चे माल के तौर पर परिभाषित किया गया है, जो खाद्यान्न फ़सलों के साथ ज़मीन घेरने की प्रतिस्पर्धा नहीं करते। हालांकि 2018 की नीति से सरकार को कुछ खाद्यान्न अनाजों को बॉयो इथेनॉल में बदलने की छूट मिलती है। पैराग्राफ 2.2 (C) के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में 'बॉयो-ईंधन के लिए नये कच्चे माल को विकसित' करना परिभाषित किया गया है। शुरूआत में इस नीति के तहत केवल 'गैर खाद्यान्न कच्चे माल' को ही अनुमति दी गई थी, 2018 में शामिल किए गए नए प्रावधानों से खाद्यान्न अनाजों को भी 'अधिशेष की स्थिति' में उपयोग की अनुमति (पैरा 5.2) दे दी गई। पैराग्राफ 5.3 के मुताबिक़, ''किसी कृषि फस़ल वर्ष के दौरान जब अनाज की पूर्ति मंत्रालय द्वारा लगाए अनुमान से ज़्यादा हो जाए, तो इस अधिशेष का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जा सकता है। इसके लिए नेशनल बॉयो कोआर्डिनेशन कमेटी की अनुमति लेनी होगी।'' सवाल यह उठता है कि क्या मंत्रालय ने 2020 को अधिशेष उत्पादन का साल घोषित कर दिया है? जबकि फ़सल कटाई के बाद से ट्रांसपोर्ट और दूसरे प्रबंध बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ऊपर से ऐसे अहम वक़्त में जब देश में महामारी फैली है, लॉकडॉउन लागू है, लाखों लोग मुसीबत में हैं, तब अनाज भंडार का उपयोग इथेनॉ़ल बनाने के लिए करने की अनुमति दे दी गई, पहली बार ऐसा फ़ैसला लिया गया है। यह फैसला केंद्रीय कैबिनेट को लेना था, जो सभी तरह के तत्वों को ध्यान में रखती। लेकिन महज़ एक कमेटी ने इसका फ़ैसला ले लिया, जो किसी भी कीमत पर केवल इथेनॉ़ल के उत्पादन में रुचि रखती है। किसी भी तरह सोचें, तो यह देश के लिए अहम वक़्त है। यहां मामला वैधानिकता से आगे नैतिकता का है। इस देश के लोगों को खाना चाहिए। भूखे लोगों की नाक के नीचे अनाज को इथेनॉ़ल में बदलना बेहद क्रूर, विपत्तिकारी और असंवेदनशील है। अगर सरकार को लगता है कि भारतीय लोगों को चावल की जरूरत नहीं है, तो उन देशों को निर्यात कर दे, जहां जरूरत है, या लाखों प्रवासियों को मुहैया करा दे, खुद भारत के पड़ोस में ही कितनी बड़ी संख्या में प्रवासी मौजूद हैं। चावल के भंडार को बॉयो-ईंधन में बदलना, जिसकी भारत को फिलहाल जरूरत नहीं है, या इसे सेनेटाइज़र में उत्पादित करना, जिसके लिए भी किसी दूसरे कच्चे माल का उपयोग किया जा सकता है, यह कदम बेहद आपराधिक प्रवृत्ति भरे हैं। अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

चावल से इथेनॉल का उत्पादन : सवाल वैधानिकता का नहीं, भूख से तड़पते देश में नैतिकता का है | न्यूज़क्लिक




कोरोना की आपदा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि खतरे में सिर्फ भात-रोटी, छत-रोजगार और जिंदगी भर नहीं है खतरे में पूरी दुनिया है - वह पृथ्वी है जिस पर मनुष्यता बसी है। जंगल नेस्तनाबूद कर दिए, नदियाँ सुखा दीं, धरती खोदकर रख दी, पशु-पक्षियों को उनके घरों से बेदखल कर दिया, पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) मटियामेट करके रख दी। बर्बादी कितनी भयावह है इसे देखने के लिए लैटिन अमरीका या कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है - सिंगरौली के बगल में रेणूकूट नाम की जगह है, उत्तर प्रदेश में पड़ती है, वहां से सड़क मार्ग से यात्रा शुरू कीजिये और सिंगरोली, सीधी, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर पार करते हुए छत्तीसगढ़ के कोरिया, सरगुजा क्रॉस करते हुए कोरबा तक पहुंचिये। अंदर मत जाइये - सड़क सड़क ही चलिए और सच्चाई अपनी नंगी आँखों से देख लीजिये। अपने कठपुतली शासकों के लिए ऐशोआराम और चुनाव जीतने के साधन भर मुहैया करके कारपोरेट ने सब कुछ उधेड़ कर रख दिया है।

कोरोना का मायका, ससुराल और इसका मुफ़ीद इलाज  | न्यूज़क्लिक




कोरोना वायरस का इन्फेक्शन सारे संसार में फैला हुआ है। चीन में, दक्षिणी कोरिया में फैल कर खत्म होने की ओर है। यूरोप और अमेरिका में पीक पर है। इधर भारत और आसपास के देशों में धीरे धीरे ऊपर बढ़ रहा है। जैसे ही कोरोना चीन में फैला, स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हुई, मोदी जी ने हवाई जहाज भेजा और वहां फंसे हुए भारतीयों को निकाल लाये। फिर उसके बाद भी ईरान से, अफगानिस्तान से, जर्मनी से, इटली से, और न जाने कहाँ कहाँ से भारतीयों को निकाल कर लाये। किसी भी भारतीय को, जो कोरोना पीड़ित मुल्क से निकलना चाहता था, उसे उस मुल्क में नहीं रहने दिया। आखिर मोदी जी ऐसे ही नहीं हैं विश्व नेता।

तिरछी नज़र : इतना आसां नहीं है विश्व नेता बनना | न्यूज़क्लिक




''लॉकडाउन में सरकार हमें चीनी दे रही है। आप ही बताइए, हम 100 किलो चीनी कहां बेचने जाएंगे? हमें तो हमारा बकाया पैसा चाहिए, वो मिल जाए बस।'' तल्‍ख़ लहजे में यह बात गन्‍ना किसान मनबीर सिंह कहते हैं। मनबीर उत्‍तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के दूधियाखुर्द गांव के रहने वाले हैं। उनका करीब 10 लाख रुपया चीनी मिलों पर बकाया है। मनबीर इस बात से नाराज़ हैं कि चीनी मिलों की ओर से गन्‍ने का पेमेंट वक्‍त पर नहीं किया जा रहा। उल्‍टा सरकार किसानों को बकाया पैसे के बदले चीनी देने की योजना लेकर आई है। इस योजना के तहत बकाया पैसे से भुगतान करते हुए किसानों को हर महीने एक कुंतल (100 किलो) चीनी दी जाएगी। यह योजना तीन महीने (अप्रैल-जून) के लिए लागू रहेगी। वैसे तो इस योजना का लाभ लेना या न लेना किसान पर निर्भर करता है, यानी अगर किसान की इच्‍छा है तो ही वो चीनी ले। इसके बाद भी किसानों को यह योजना उनके जले पर नमक छिड़कने जैसी लग रही है।

यूपी सरकार का गन्‍ना किसानों को चीनी का ऑफर, किसानों ने कहा- हमें पैसा चाहिए | न्यूज़क्लिक




दक्षिणी तमिलनाडु के कोनार समुदाय के लोगों की आय का मुख्य स्रोत भेड़ पालन और प्रजनन है, यह उनके पारंपरिक जातिगत व्यवसाय से जुड़ा है। जबकि भेड़ें इनके परिवार के झुंड का प्रमुख हिस्सा होती हैं, पर कभी-कभार ये लोग कुछ बकरी और गाय पालन करते भी पाए जाते हैं। ये परिवार आम तौर पर खुद को दो समूहों में बांट लेते हैं: इनमें से एक समूह खानाबदोश की ज़िंदगी जीते हैं, झुंड के साथ इधर से उधर जहां कहीं उन्हें चारे का बेहतर जुगाड़ दिखता है, वहां पर खेत मालिकों से इजाज़त लेकर टेंट या झोपड़ी बनाकर अस्थाई तौर पर रुक जाते हैं। परिवार का दूसरे समूह (अक्सर परिवार के बुजुर्ग) अपने पैतृक गांव में ही रहता है और खेतीबाड़ी सहित परिवार के बच्चों की देखभाल का काम करते हैं।

ग्रामीण भारत में कोरोना-22: लॉकडाउन का तमिलनाडु के गड़रिया समुदाय पर पड़ता असर | न्यूज़क्लिक




फेक जानकारी फैलाने वालों में अब पुलिस का नाम भी जुड़ गया है। दरअसल, दिल्ली पुलिस के दो सिपाहियों का वीडियो सामने आया है, जिसमें वो मस्जिदों से होने वाली अज़ान को लेकर ग़लत जानकारी देते नजर आ रहे हैं। पुलिसकर्मियों का ये वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरस हो रहा है। 1 मिनट 52 सेकंड के इस वीडियो को दिल्ली के प्रेमनगर इलाक़े का बताया जा रहा है। वीडियो में पुलिसकर्मी मस्जिद के सामने खड़े होकर कह रहे हैं कि अजान नहीं होनी चाहिए, इस पर रोक लगा दी गई है। पुलिसकर्मियों ने दावा किया कि ये रोक एलजी साहब के ऑर्डर पर लगाई गई है।

दिल्ली: अज़ान पर पाबंदी का पुलिसकर्मियों का दावा निकला झूठा, LG ने ऐसा कोई ऑर्डर जारी नहीं किया




ফের করোনা-আক্রান্তের সন্ধান মিলল ব্যারাকপুর শিল্পাঞ্চলে। এ বার এক দিনে দু’জন। এক জন পানিহাটির বাসিন্দা, অন্য জন ব্যারাকপুরের। দু’জনেই বৃদ্ধ। এই খবর চাউর হতেই আতঙ্ক ছড়িয়েছে এলাকায়। পানিহাটিতে শনিবার প্রথম সংক্রমণের খবর মিললেও ব্যারাকপুরে এ নিয়ে চার জন সংক্রমিত হলেন। গত কয়েক দিন ধরে রোজই ব্যারাকপুরের বিভিন্ন এলাকা থেকে সংক্রমণের খবর আসছে। আক্রান্তদের বারাসতের কোভিড হাসপাতালে পাঠানো হয়েছে। কোয়রান্টিনে পাঠানো হয়েছে তাঁদের পরিবারের সদস্য-সহ বেশ কয়েক জনকে। এলাকা ‘সিল’ করে দিয়েছে পুরসভা। পাড়ার বাসিন্দাদের বাইরে বেরোতে বারণ করা হয়েছে। আপাতত ওই পরিবারগুলিকে নিত্য প্রয়োজনীয় জিনিসপত্র জোগাবে সংশ্লিষ্ট পুরসভাই। পানিহাটির আক্রান্ত ব্যক্তি গত কয়েক দিন এলাকায় দোকান-বাজার করেছেন। ফলে সেখানকার বাসিন্দারা এখন প্রবল আতঙ্কিত। ব্যারাকপুরের আক্রান্ত কলকাতার একটি বেসরকারি হাসপাতালে চিকিৎসাধীন ছিলেন। সেখান থেকে বাড়ি ফেরার পরেই তিনি আক্রান্ত হন বলে জানিয়েছে ব্যারাকপুর পুরসভা। পানিহাটি পুরসভা সূত্রের খবর, ঘোলা বাসস্ট্যান্ড এলাকার ওই বাসিন্দা প্রাক্তন পুলিশকর্মী। বয়স ৬৫। গত কয়েক দিন ধরে জ্বরে ভুগছিলেন। স্থানীয় এক চিকিৎসককে দেখিয়েও সুস্থ হননি। গত বৃহস্পতিবার পুরসভার অ্যাম্বুল্যান্স ডেকে নিজেই পানিহাটি স্টেট জেনারেল হাসপাতালে যান তিনি। সেখানে তাঁর লালারসের নমুনা সংগ্রহ করে তা ব্যারাকপুরের করোনা পরীক্ষা কেন্দ্রে পাঠানো হয়। বাড়ি ফিরে শুক্রবার তাঁর শ্বাসকষ্ট শুরু হলে নিয়ে যাওয়া হয় ব্যারাকপুরের এক বেসরকারি হাসপাতালে।

Coronavirus in West Bengal: Infection is spreading in Barrackpore industrial belt - Anandabazar




দাওয়াই দিয়ে ফেলেছিলেন আগেই। বলেছিলেন ম্যালেরিয়ার ওষুধ হাইড্রক্সিক্লোরোকুইন-ই নাকি করোনা-যুদ্ধে ‘গেমচেঞ্জার’ হবে। কিন্তু মার্কিন প্রেসিডেন্ট ডোনাল্ড ট্রাম্পের দেওয়া সেই ওষুধের ব্যবহার নিয়ে সতর্ক করল ইউএস ফুড অ্যান্ড ড্রাগ অ্যাডমিনিস্ট্রেশন (এফডিএ)। তাদের পরামর্শ, এই ওষুধ প্রয়োগের আগে করোনা-নিরাময়ে ওষুধটির কার্যকারিতা সম্পর্কে ভাল করে জানা প্রয়োজন। ট্রাম্পের দাওয়াই বাতলানো অবশ্য নতুন কথা নয়। গত কাল তাঁর খেয়াল হয়, জীবাণুনাশক ইনজেক্ট করে ফুসফুস সাফ করা যায় কি না। জোরালো আলো ঢুকিয়ে করোনা তাড়ানো নিয়েও ভাবতে বলেন তিনি। দিনের শেষে অবশ্য প্রেসিডেন্ট সাংবাদিকদের বলেন, ‘‘আপনাদের কথা মাথায় রেখেই একটু মজা করেছিলাম। দেখতে চেয়েছিলাম কী হয়।’’ আজ অবশ্য হাইড্রক্সিক্লোরোকুইন নিয়ে প্রশ্ন উঠতে বলেছেন, ‘‘আমি ডাক্তার নই।’’ এক মার্কিন হাসপাতালের চিকিৎসকেরা হাইড্রক্সিক্লোরোকুইনের কার্যকারিতা বিশ্লেষণ করে সম্প্রতি একটি রিপোর্ট জমা দিয়েছেন। তাতে তাঁদের বক্তব্য, আলাদা করে কোনও উপকারিতা নেই ওষুধটির। রিপোর্টটি পুনর্বিচারের জন্য বিশেষজ্ঞদের কাছে পাঠানো হয়েছে। এতে ট্রাম্প বলেছেন, ‘‘আপনারা দু’রকম কথাই শুনে থাকতে পারেন। আমি চিকিৎসক নই। পরীক্ষা করে দেখতে হবে। ওষুধটি যদি সাহায্য করে, তা হলে তো খুব ভাল। যদি কাজ না করে, তা হলে ব্যবহার করা হবে না।’’

Coronavirus: FDA warns Donald Trump to be aware of the usage of Hydroxychloroquine - Anandabazar




করোনায় মৃত্যুমিছিল চলছেই। বিশ্ব জুড়ে মৃতের সংখ্যা আজই দু’লক্ষ ছাড়িয়েছে। যার এক-চতুর্থাংশ শুধু আমেরিকাতেই। সংখ্যাটা ইতিমধ্যেই ৫৩ হাজার পেরিয়ে গিয়েছে। আমেরিকায় আক্রান্তের সংখ্যা প্রায় ৯ লক্ষ ৪৫ হাজার। এরই মধ্যে তবু তিনটি প্রদেশে আজ থেকেই খুলে গেল বিউটি পার্লার, স্পা, এমনকি ট্যাটু পার্লারও। সোমবার থেকে থিয়েটার-রেস্তরাঁ খুলছে আলাস্কায়। এতে আর্থিক অচলাবস্থার হয়তো কিছুটা সুরাহা হবে, কিন্তু পারস্পরিক দূরত্ববিধির কী হবে— সিঁদুরে মেঘ দেখছেন বিশেষজ্ঞরা। প্রেসিডেন্ট ডোনাল্ড ট্রাম্প তবু যেন নির্বিকারই। শুক্রবার হোয়াইট হাউসে প্রেস ব্রিফিং করলেন ২০ মিনিটেরও কম সময়ে। সাংবাদিকদের কোনও প্রশ্নই নিলেন না। শুধু এক ফাঁকে জানিয়ে দিলেন— আমেরিকায় এই মৃত্যুমিছিলের দায় তিনি নেবেন না। কারণ, করোনা মোকাবিলায় তাঁর প্রশাসন ‘অসাধ্যসাধন’ করেছে।

Coronavirus: Death rate in America exceeds 53 thousand - Anandabazar




पालघर में दो संतों समेत तीन लोगों की हत्या दुखद है। इस कृत्य को सिर्फ एक आपराधिक घटना मान कर छोड़ना ठीक नहीं होगा। क्योंकि ऐसी घटनाएं निश्चित ही किसी उत्प्रेरक विचार से प्रेरित और पोषित होती है। क्या दादरी के अख़लाक़, क्या अलवर के पहलू ख़ान, क्या बुलंदशहर के एसआई सुबोध कुमार और अब पालघर में संतों की हत्या, भीड़ का चरित्र एक है, निशाने पर हर जगह निर्दोष हैं। ये एक ऐसी रक्तपिपासु भीड़ हैं, जिसे सिर्फ एक ऑबजेक्ट चाहिए। वह ऑबजेक्ट किसी भी जाति-धर्म का हो सकता है। तो सवाल उठता है कि आखिर, इस रक्तपिपासु भीड़ का निर्माण होता कैसे है?

दादरी से पालघर: रक्तपिपासु भीड़ का ‘ह्यूबरिस सिंड्रोम’ कनेक्शन!   | न्यूज़क्लिक




यह तथ्य तो अब जगजाहिर हो चुका है कि भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के बढ़ते मामलों के लिए एक संप्रदाय विशेष को संगठित और सुनियोजित रूप से ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह काम सरकार के स्तर पर भी हो रहा है और सत्तारुढ़ बीजेपी के संगठनात्मक स्तर पर भी। मुख्यधारा के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी इस काम में बढ़-चढ़ कर उनका साथ निभा रहा है। लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार भी इस तरह की मुहिम में पीछे नहीं है। दोनों के अभियान में फर्क इतना है कि जहाँ बीजेपी और केंद्र सरकार का अभियान ज़मीनी स्तर पर साफ़ दिखाई देता है, जबकि आम आदमी पार्टी उसी काम को बेहद सधे हुए ढंग से कर रही है। हालाँकि यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस महामारी के सांप्रदायीकरण के अभियान में आम आदमी पार्टी का भारतीय जनता पार्टी के साथ किसी तरह का तालमेल है, लेकिन यह तो तय है कि वह भी परोक्ष रूप से इस महामारी की चुनौती को अपना राजनीतिक लक्ष्य साधने के एक अवसर की तरह इस्तेमाल कर रही है।

arvind kejriwal follows narendra modi footprint on coronavirus outbreak muslims - कोरोना महामारी के इस दौर में मोदी के नक्श-ए-क़दम पर केजरीवाल! - Satya Hindi




न्यूयॉर्कः अमेरिका में बेरोजगारी दर 1930 की महामंदी के बाद सबसे अधिक हो गई है. सरकार द्वारा गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कोरोना वायरस के चलते हर छह में एक अमेरिकी श्रमिक को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है. इस गहराते आर्थिक संकट का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी संसद ने लगभग 500 अरब अमेरिकी डॉलर के पैकेज को मंजूरी दी है. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में लगातार पांच सप्ताह से बड़ी तादाद में अमेरिकी कामगार बेरोजगारी लाभ के लिए आवेदन कर रहे हैं. कोरोना वायरस के मद्देनजर लॉकडाउन के बीच सरकार से वित्तीय राहत की मांग कर रहे हैं. अमेरिकी श्रम विभाग का कहना है कि 18 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में देश के 44 लाख से अधिक लोगों ने बेरोजगारी लाभ के लिए आवेदन किया.

कोरोना वायरस: अमेरिका में महामंदी के बाद बेरोज़गारी दर उच्च स्तर पर




दिल्ली: हिमाचल हाईकोर्ट ने बुधवार को अधिकारियों और जिला प्रशासन को राज्य भर में फंसे हुए हजारों प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन और चिकित्सा देने का निर्देश दिया। वकील सुभाष चंद्रन केआर की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सरकार को तत्काल कदम उठाने और 5 मई से पहले की गई कार्रवाई पर जबाब दाखिल करने को कहा। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में 25 मार्च से ही देशव्यापी लॉकडाउन से फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को भोजन और राशन मिलने में मुश्किल हो रही है। इसे लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) माकपा के विधायक ने शिमला प्रशासन के ऑफिस में धरना भी दिया था। याचिका को लेकर एडवोकेट चंद्रन ने न्यूजक्लिक को बताया, 'मैंने 17 अप्रैल को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने मामले की सुनवाई अगले दिन ही की। सरकारी वकील ने अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कुछ समय की मांग की। अगली सुनवाई 22 अप्रैल को हुई और अदालत ने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी मज़दूर भूखा न रहे।'

हिमाचल: मज़दूरों की जीत, हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देशित किया कि वो सभी की मदद करें | न्यूज़क्लिक




वाराणसी: दीनापुर वाराणसी का ऐसा अनूठा गांव है जहां धान-गेहूं नहीं, सिर्फ फूलों की खेती होती है। वही फूल जो बाबा विश्वनाथ और काशी के कोतवाल काल भैरव के माथे की शोभा बनते रहे हैं। यहां के रंग-बिरंगे फूल सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, बिहार से कोलकाता तक जाते रहे हैं। दीनापुर के बागवानों के लिए ये फूल सोने से कम नहीं थे, लेकिन कोरोना के चलते अब माटी हो गए हैं। फूलों की खेती से समृद्ध और खुशहाल दीनापुर के किसान अब खून के आंसू रो रहे हैं। दीनापुर गांव वाराणसी मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर है, यहां की आबादी लगभग सात हज़ार है। इस गांव में जाने के ठीक से सड़कें भी नहीं हैं। इसके बाद भी यहां के लोग लगातार जी तोड़ मेहनत करते रहते हैं। यहां रहने वाले करीब तीन सौ परिवार सिर्फ फूलों की खेती करते हैं। लगभग तीन सौ एकड़ जमीन में पीले नारंगी गेंदे तो कभी सफेद बेले, कुंद व टेंगरी और गुलाब से ढका रहता है।

वाराणसी: लॉकडाउन के चलते खेतों में ही बर्बाद हो रही फूलों की फसल, बेहाल हैं किसान | न्यूज़क्लिक




स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक देश में कुल संक्रमितों की संख्या 23,077 हो गयी है जिनमें से 4,749 लोगों को ठीक किया जा चुका है और 718 लोगों की मौत हो चुकी है। इस तरह इस समय देश में सक्रिय मामलों की कुल संख्या 17,610 हो गई है। पिछले 24 घंटों में यानी (22 अप्रैल सुबह 8 बजे से लेकर आज, 23 अप्रैल सुबह 8 बजे तक) कोरोना संक्रमण के 1684 नये मामले सामने आये है और 37 लोगों की मौत हुई है। साथ ही बीते दिन में 491 लोग को ठीक भी किया जा चुका है। इस तरह कुल सक्रिय मामलो में 1,156 नये सक्रिय मामले और जुड़ गए हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा आज, 24 अप्रैल सुबह 9 बजे जारी आकड़ों के अनुसार कुल 541789 सैंपल की जांच की गयी है, जिनमें से 41247 सैंपल की जांच बीते 24 घंटो में की गयी है।

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 1,684 नये मामले, 37 और लोगों की मौत | न्यूज़क्लिक